मंत्र एक विशिष्ट अद्वितीय ध्वनि है, जिसको ऋषि वैज्ञानिकों द्वारा, ध्यान की अवस्था में सूक्ष्म जगत में जाकर, सुनकर, (by listening) खोजा गया है और फिर स्थूल जगत में वापस आकर मंत्र रूप में संगठित किया गया है| व्यक्तिगत रूप से मंत्र का जाप करने से मंत्र से हुई हलचलों का लाभ केवल प्रयोक्ता को होता है| पर यदि इस मंत्र ऊर्जा का लाभ अधिकाधिक जन समुदाय को तथा विशाल क्षेत्र में पहुंचाना हो तो इसको व्यापक बनाने के लिये इसके साथ ताप और प्रकाश को यज्ञ रूप में जोड़ा जाता है, जिससे मंत्र अधिक शक्तिशाली और विश्वव्यापी बनता है।
यज्ञ के दौरान उच्चारित किए गए मंत्रों की ध्वनि दूर अंतरिक्ष में कैसे पहुंचती होंगी, मंत्र का कैसे व्यापकीकरण और विस्तृतीकरण होता है? इस प्रश्न का उत्तर आधुनिक भौतिक विज्ञान में रेडियो ब्रॉडकास्टिंग प्रणाली समझकर प्राप्त किया जा सकता है। ध्वनि तरंगों की आवृत्ति (frequency) कम होती है और तरंग दैर्ध्य (wavelength) अधिक| फल स्वरूप इनमें ऊर्जा कम होने से दूर तक संचरण न कर पाने के कारण यह अधिक दूरी पर सुनाई नहीं देती तथा साथ ही यह निर्वात (वायु रहित स्थान) में भी संचरण नहीं कर सकती। ध्वनि तरंगों के संचरण के लिए माध्यम (medium) की आवश्यकता होती है।
आधुनिक विज्ञान की सहायता से ध्वनि को दूर तक पहुंचाने के लिए इन ध्वनि तरंगों को वाहक तरंगों (carrier waves), रेडियो तरंगों के ऊपर अतिव्यापीत (superimpose ) किया जाता है। रेडियो तरंगों की आवृत्ति, इलेक्ट्रोमैग्नेटिक विकिरण (electromagnetic radiation) की आवृत्ति (frequency) के समान होती है। उच्च आवृत्ति की तरंगे होने के कारण रेडियो तरंगे अंतरिक्ष में संचरण कर सकती हैं। ध्वनि तरंगें इन पर सुपरिंपोज्ड होकर दूर तक यात्रा कर पाती हैं । इस तकनीकी को माड्यूलेशन टेक्निक के नाम से जाना जाता है। इस तकनीक से रेडियो ब्रॉडकास्टिंग स्टेशन काम करते हैं।
यज्ञ के समय प्रज्वलित अग्नि से प्रकाश व उष्मीय तरंगे उत्पन्न होती हैं। यह तरंगे ध्वनि तरंगों के लिए वाहक तरंगों (carrier waves) का काम करती हैं। मंत्र उच्चारण के समय उत्पन्न हुई ध्वनि तरंगे , अग्नि से उत्पन्न हुई विद्युत चुंबकीय तरंगों पर अतिव्यापित (superimposed) होकर प्रवर्धित (amplified ) और ट्रांसमीट ( transmit ) होती है। इस तरह अग्निहोत्र प्रक्रिया से मंत्र को ताप और प्रकाश के साथ जोड़कर, अधिक विस्तृत, शक्तिशाली और विश्वव्यापी बनाया जाता है।
सन्दर्भ -पँ श्री राम शर्माजी आचार्य / वांग्मय-26, यज्ञ एक समग्र उपचार प्रक्रिया, पेज -1.7,1.8 पर आधारित लेख - नीति टंडन
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