आज हम जिस हवा में सांस ले रहे हैं। उसमें नाइट्रोजन डाइऑक्साइड तथा सल्फर डाइऑक्साइड जैसी विषैली गैसों की मात्रा अक्सर सरकार द्वारा निर्धारित मानकों से ऊपर रहती है और मानव स्वास्थ्य के लिए बेहद हानिकारक है हमारे स्वास्थ्य पर इनका क्या बुरा असर हो सकता है, यह जानना अति आवश्यक है ।
ये गैसें यदि ज्यादा मात्रा में हमारे अंदर आ जाती हैं तब क्या होता है? नाइट्रोजन ऑक्साइड (NO) एवं नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (NO2) के मुख्य स्रोत है डीज़ल से चलने वाले वाहन एवं फैक्ट्रीयां| ये हमारे श्वसन तंत्र को प्रभावित करती है, इनसे वायरल इनफेक्शन बढ़ने का खतरा रहता है, छाती में जकड़न महसूस होती है, आंखें जलने लगती है और सिर दर्द होता है इत्यादि-इत्यादि परेशानियां हो सकती है।
इसी प्रकार से सल्फर डाइऑक्साइड (SO2) गैस भी डीज़ल से चलने वाले वाहनों, फ़ैक्टरियों इत्यादि से निकलती है।यदि यह गैस हमारे अंदर ज्यादा मात्रा में चली जाए तो उसके कारण भी हमें स्वास्थ संबंधी समस्याएं हो सकती हैं जैसे की क्रॉनिक ब्रोंकाइटिस, अस्थमा पलमोनरी एडिमा, हार्ट की बीमारियां, कैंसर इत्यादि।
बढ़ते हुए वाहन अथवा कारखाने तो कम नहीं किए जा सकते तो फिर इस प्रदूषण का क्या कोई इलाज नहीं? जी हाँ मायूस होने की आवश्यकता नहीं है। हमारे प्राचीन वैदिक विज्ञान ने इसके लिए एक विधा खोज निकाली थी, जो आज के समय मे भी इस प्रदूषण को कम करने मे कारगर नज़र आती है और वो है हमारे आदि-काल के वैज्ञानिक ऋषि- मुनियों द्वारा प्रदत्त ‘यज्ञ विज्ञान’|
जी हाँ चौकिए नहीं! ये बात हम सिर्फ अनुमान के आधार पर अथवा शास्त्रों के आधार पर नहीं कह रहे है बल्कि वैज्ञानिक शोध के आँकड़ो के आधार पर कह रहे है। यज्ञ जिसे की एक धार्मिक कृत्य के रूप मे माना जाता है, वह अपने मे एक संपूर्ण वैज्ञानिक कृत्य है और इस विज्ञान की खोज मे लगा है देव संस्कृति विश्व विद्यालय, हरिद्वार। यहां से यज्ञ पर एक Ph.D, डा. ममता सक्सेना, जो कि एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी है। उन्होंने यहाँ से सन 2006 में यज्ञ पर Ph.D की। उन्होंने इस पर्यावरणीय समस्या के लिए एक ऐसा समाधान खोजने का प्रयास किया जो की कि लंबे समय तक प्रभावशाली और स्थायी हो| उन्होंने दिल्ली स्थित केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) के साथ मिल कर यज्ञ का प्रभाव NO2 व SO2 जैसी गैसों पर प्रभाव शोधों के माध्यम से देखा।
पहले प्रयोग में, दिल्ली के इंडिया गेट के पास कस्तूरबा गांधी मार्ग पर 2004 मे खुली हवा मे एक 5 कुंडिया यज्ञ किया गया था, जिसमे हवा की दिशा मे नीचे की तरफ उच्च मात्रा वायु सैंपलेर रखा गया और 24 घंटे तक नमूने लिए गए जिनका परीक्षण सीपीसीबी की लैब मे किया गया और नतीजे चौंकाने वाले थे।
यज्ञ वाले दिन NO2 का स्तर एक दिन पहले के तुलना में 56 पी पी एम से घट कर 29.5 पी पी एम रह गया जो की 47.3% की कमी आयी। अगले दिन ये स्तर घट कर लगभग 23 पी पी एम रह गया अर्थात NO2 के स्तर मे 60% की कमी देखि गयी थी।
SO2 के नतीजे तो और भी प्रभावशाली है, एक दिन पहले की तुलना मे यज्ञ वाले दिन SO2 का स्तर 11 पी पी एम से घट कर 1.5 पी पी एम रह गया यानि कि लगभग 86.4% पी पी एम की कमी आयी थी और अगले दिन उसका स्तर डिटेक्शन लेवेल से नीचे अर्थात 96% से भी कम हो गया था।
एक वर्ष बाद पुनः इस प्रयोग को दोहराया गया और लगभग इसी प्रकार के नतीजे आये । जो की नीची दिए गए ग्राफ में देखा जा सकता है।
यज्ञ के बाद NO2 एवं SO2, दोनों ही गैसें काफी घट गयी।अतः हम ये कह सकते हैं कि यदि यज्ञ पूरी सावधानी के साथ पूरी विधि - विधान से किया जाए तो काफी हद तक प्रदूषणकारक गैसों मे भी कमी आ जाती है। जरूरत है हमे इस पर और शोध करने की। अधिक जानकारी के लिए आप www.yagyopathy.com पर visit करें, जहाँ पर आप इस रिसर्च के बारे में पढ़ सकते हैं और सारे प्रयोगों के प्रमाण भी देख सकते है ।
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