यज्ञ, जिसमें अग्नि में हवन सामग्री डाल कर होमी जाती है, और धुआँ उत्सर्जित होता है, क्या उसके द्वारा पी.एम. का स्तर घटाया जा सकता है? यह एक ऐसा प्रश्न है जो सभी के मन में रहता है। तो चलिये आज हम लोग बात करते है एक ऐसे प्रदूषण की जो की भारत सरकार के लिये सिरदर्द बन चुका है और आज के Air Quality Index (AQI) का मुख्य कारण स्रोत भी है। यह है पर्टिकुलेट मैटर अर्थात पी.एम.। ये अधिकतर ऐसे टॉक्सिक पदार्थ के धूल कण होते हैं जो साँस के माध्यम से फेफड़ों के अंदर जाते है और अंदर ही रुक जाते है तथा कई बीमारियों का कारण बनते है। आइये पहले हम जान ले, की इनके स्तर के बढ़ने से हमें क्या - क्या रोग हो सकते हैं ।
फेफड़ों में पी.एम. के कणों की मात्रा बढ़ने से हृदय या फेफड़ों की बीमारी वाले लोगों की समय से पहले मौत हो सकती है। दिल का दौरा पड़ सकता है, दिल की धड़कनें अनियमित हो सकती हैं, अस्थमा बेतरह बढ़ सकता है, फेफड़ों की कार्य क्षमता में कमी आ सकती है, श्वसन संबंधी लक्षणों में वृद्धि जैसे साँस की नली में जलन,खांसी या सांस लेने में कठिनाई हो सकती है इत्यादि।
अब जानते हैं कि ये कहां से उपजते हैं। इनके स्रोत हैं जलने वाले ईंधन, कन्स्ट्रकशन गतिविधियाँ, बिजली बनाने के प्लांट्स, लकड़ी का जलना, औद्योगिक प्रक्रियाएं, डीज़ल से चलने वाले वाहन इत्यादि.जाड़े में तथा आम दिनो में भी बड़े शहरों में इनका स्तर खतरनाक से ऊपर चला जाता है और कमजोर लोगों में उपरोक्त रोगों की वृद्धि होने लगती है। भारत में 2017 में लगभग 12.4 लाख मौतें वायु प्रदूषण के कारण हुई हैं। एक अध्ययन में कहा गया है कि पिछले साल भारत में आठ मौतों में से एक वायु प्रदूषण के कारण थी, जो तंबाकू के उपयोग से होने वाली मौतों से अधिक है।
फिर क्या इसका निदान संभव है? ये एक बड़ा प्रश्न है और आज के आधुनिक उपचारों में कोई भी अभी तक इतना कारगर उपाय नहीं निकला है जो कि वातावरण में फैले हुए विषैले धुएँ को कम का सके| परंतु हमारे पारंपरिक विज्ञान में ऐसे तरीके थे जिनसे हम आज इस प्रदूषण की समस्या का सामना कर सकते है| इससे प्रदूषण को सिर्फ कम ही नहीं किया जाता है, अपितु वातावरण में पौष्टीक पदार्थ भी पहुँचाये जाते है जो कि साँस के द्वारा मनुष्यों के भीतर पहुँच कर उसे शारीरिक व मानसिक लाभ पहुँचाते है| ये बात सिर्फ दर्शन अथवा पौराणिक शास्त्रों के आधार पर नहीं कही जा रही है वरन हाल ही में हुई कुछ शोधों के आधार से कही जा रही है| हम आपको वैज्ञानिक आँकड़ों के द्वारा दिखाएँगे की यज्ञ के द्वारा वातावरण का पी.एम. कैसे कम होता है|
भारत सरकार की एक वरिष्ठ अधिकारी, श्रीमती ममता सक्सेना जी ने हाल ही में यज्ञ पर अनेक प्रयोग किए। इनमे दिल्ली में घर के अंदर एक दिन पहले दिन भर का औसतन पी.एम. 10 व पी.एम 2.5 नापा जिसे कंट्रोल बनाया। उसके बाद यज्ञ के दिन व उसके दो दिन बाद तक हवा की सैमपलिंग की और उसके नतीजे निम्न है।
कंट्रोल की तुलना में यज्ञ वाले दिन पी.एम. 10 की मात्रा 19% कम हुई जो कि अगले दो दिन में 63% व 61% और घट गयी। यह कमी काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि अभी तक किसी भी यंत्र के द्वारा घर के अंदर पी. एम. में इतनी ज्यादा कमी नहीं आ सकी है ।
इसी प्रकार पी.एम. 2.5 यज्ञ वाले दिन हल्का सा, लगभग 5% बढ़ा परंतु अगले दो दिनों में कंट्रोल की तुलना में वह 74% और 71% कम हो गया| यह कमी काफी महत्वपूर्ण है।
यज्ञ का घर के अंदर के पी.एम पर प्रभाव
ऐसे अनेक प्रयोग अभी तक ममता सक्सेना व कुछ अन्य लोगों के द्वारा किए जा चुके हैं जिनके आँकड़े उपलब्ध है।
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